“मन को वश में करो दुनियॉ तुम्हारे वश में रहेगी”
1 -अपनी शक्ति को सन्तुलित करें
कुछ लोग सहज योग के लिए खूब प्रचार
करते हैं लेकिन अपनी ओर ध्यान नहीं देते,वे बाह्य
में तो बहुत काम करते हैं मगर अन्दर की शक्ति की
ओर ध्यान नहीं देते, जिससे उत्थान की ओर गति प्राप्त
नहीं करते।कुछ लोग अन्दर की शक्ति की ओर ध्यान देते हैं
मगर वाह्य की ओर ध्यान नहीं देते,जिससे उनमें संतुलन नहीं
आ पाता है वाह्य शक्ति की ओर बढने पर उनकी अन्दर की शक्ति
क्षीण हो जाती है जिससे वे अहंकार में डूबने लगते हैं। इन लोगों का
दूसरों से सम्बन्ध नहीं हो पाता उनका सम्बन्ध तो इतना होता है कि
किस तरह दूसरों पर रौब झाडें,वे अपने ही महत्व तक सोचते हैं,उनके
लिए चैतन्य कहता है कि अच्छा तुझे जो करना है कर मिटा ले स्वयं
को। वह आपको रोकेगा नहीं । हम तॉ एक विराट शक्ति हैं, अगर हम
चाहते हैं कि कमरे में बैठकर म़ाता की पूजा करें दुनिय़ा से हमारा क्या
मतलव तो वे लोग भी आगे बढ नहीं सकते। यह तो एसा हो गया कि
हाथ की एक अंगुली कह रही हो कि मेरा इस हाथ से कोई सम्बन्धनहीं
है। इसलिए हमें आंतरिक और वाह्य दोनों शक्तियों की ओर ध्यान देना
होगा तभी हमारे अन्दर पूरी शक्ति का संतुलन होगा ।
2 -मध्य संतुलन की स्थिति में रहें
स्वयं पर नियंत्रण रखें कोई अति करने
की आवश्यकता नहीं है,वैसे अति में जाना मानवीय
गुंण है।यदि आप तर्कसंगत हैं तो तर्कसंगत ठहराते चले
जाते हैं,मैं एसा नहीं कर सकता,ये ही होता रहा है,मै वैसा
नहीं कर सकता आप इतने भावक हो जाते हैं कि भावनात्मक
के नाम पर गलत काम करने लगते हैं ।स्वयं पर दृष्टि रखें।मध्य
में आने की कोशिस करें,जहॉ पर कि आप पूरी परिधि को देख सकते
हैं।यदि आप मध्य से हटकर दायें –बॉयें चले गये तो सारा ही वैलेंस खत्म
हो जायेगा। आदमी सोचता है कि वह राइट साइड है तो थोडा अपने को
लेफ्ट साइड में ले जाना चाहिए,लेफ्ट साइड यानी आप भाउकता में
बढ गये तो आपको चाहिए कि अपने को सन्तुलन में रखें।
3 -परमात्मा की बुद्धि मध्य में है उसी में समाकर रहें
अति अक्लमंद किसी काम का नहीं है।
परमात्मा की बुद्धि तो बीच में है। उसी में समाकर
रहना चाहिए।हम अति पर चले जाते हैं, और अपनी
आदतें नहीं बदलते,हर बार हम अति पर चले दजाते हैं।
हमारा स्वयं पर नियंत्रण नहीं है,जिस तरह हमारा मस्तिष्क
बताता है हम वही बात मान लेते हैं,न हमारे अन्दर सन्तुलन
है और न हमारी शारीरिक आवश्यकतायें सन्तुलित हैं,किसी भी
प्रकार का सन्तुलन नहीं है,जैसा हम ठीक समझते हैं बिना सोचे
समझे किये चले जाते हैं। यह हमारी विवेकशीलता नहीं है। सहजयोग
में आने से सारे दोष दूर हो जाते हैं। और जब वे दोष समाप्त हो जाते
हैं तो समझ लेना चाहिए कि आपने बडी भारी चीज हासिल कर ली है,जब
तक आपके अन्दर वे दोष होंगे तब तक आप उन्हीं चीजों में लगे रहेंगे दूसरों
से झगडा करना, आदि तो समझलेना चाहिए कि आप मध्य में नहीं हैं।जब
आप मध्य में होंगे तो आप किसी एक चीज से लिप्त नहीं होंगे, आप सब
में समाये रहेंगे। आपको देखना होगा कि आप अहं या प्रति अहं में तो नहीं
हैं यदि प्रति अहं है तो आप बायें ओर की बाधा से ग्रस्त हैं आलसी व्यक्ति
को चाहिए कि काम की आदत डालें,मस्तिष्क को भविष्य की योजनाओं को
बनाने में लगा दें इस प्रकार बायें ओर से खिंचाव से बचकर धीरे-धीरे स्वयं
को संतुलित करें।और यदि दायें ओर अधिक गतिशील हों तो, तामसिकता
द्वारा नहीं बल्कि मध्य का इस्तेमाल करें। बायें ओर तमोगुंण है और दॉयी
ओर रजोगुंण है । हमेशा मध्य में रहें ।संतुलन में रहें।
4 -सत्य की खोज
प्रचीनकाल में अनेक महान लोग इस
पृथ्वी पर सत्य को बताने के लिए अवतरित हुये
और अपने-अपने स्तर से मानव को समझाने का
जी जान से प्रयास करने लगे कि आध्यात्म क्या है,
लेकिन विषमता इतनी अधिक थी कि लोग इस बात को
कभी नहीं समझे कि आध्यात्मिकता हमारे लिए अत्यन्त
आवश्यक है।हमें परमात्मा से उनके प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति
से एकाकारिता करनी है।उन्होंने अपने प्रयत्न गलत दिशा की ओर
दिये।लेकिन मानव तो बुद्धिमान था उसने खोज प्रारम्भ की, सत्य की
नहीं बल्कि अपनी मुक्ति की,अपनी उन्नति की,इस दिशा की ओर वे भूल
गये कि सर्व प्रथम तो आध्यात्म की खोज करनी चाहिए थी, क्योंकि आध्यात्म
ही महत्वपूर्ण है। उससमय हमारे सामने दो प्रकार की यात्रायें थी एक तो बायें ओर
और दूसरी दायें ओर से ।सत्य की खोज में लोग जंगलों में चले गये और संत बन
गये लेकिन वे लोग दायीं ओर की तपस्या कर रहे थे अर्थात अपने पंच्चतत्वों पर
स्वामित्व प्राप्त करना ।सभी तत्वों की आन्तरिक चेतना के विषय में वे जानते थे
इन्हीं कारणों से वे इनकी पूजा करने लगे।पर यह तो दांयें ओर की गतितविधि बन
गई।अर्थात कर्म काण्ड में बायी ओर के विना दॉयां पक्ष अत्यन्त भयानक होता है।
यदि आप में दॉयॉ पक्ष नहीं है तो भी तो भी भयानक बात है,लेकिन सर्व प्रथम
आपको अपने बॉये पक्ष को विकसित करना होगा ।करुणॉ,प्रेम,और सबके लिए
सौहार्द ही बॉयॉ पक्ष है।बायें ओर बहुत सी चीजें हैं देवी आपके अन्दर भिन्न
रूपों में विराजमान है, इसलिए अपना बॉयॉ पक्ष सबसे पहले मजबूत करें
।जिन लोगों ने दॉयॉ पक्ष अपनाया वे अत्यन्त आक्रामक हो गये और पंच्च
तत्वों के सार का स्वामित्व प्राप्त कर लिया । यह तो ठीक है पर वे लोग
क्रोधी स्वभाव के हो गये कि लोगों को श्राप देने लगे,कठोर वातें वे कहते
थे।जो लोग दायें ओर का मार्ग पकडते हैं,परमात्मा के आशीर्वाद के बिना
चलते है,वास्तव में वे राक्षस बन जाते हैं यह मानवता के लिए एक
खतरा है।