मनुष्य सबसे अधिक विवेकशील प्राणी है


                     जीवन का महत्व इसी
से पता चलता है कि प्रत्येक व्यक्ति
या प्रत्येक जीव अपने जीवन से प्यार
करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को
अधिक सुंदर और सफल बनाना चाहता है। ऐसा
इसलिए, क्योंकि जीवन से बढ़कर कुछ नहीं होता,
इसलिए अपनी जान सभी को प्यारी होती है।

                                  भले ही पशु-पक्षियों को
प्रखर विवेक नहीं होता, लेकिन जब जान
बचाने की बारी आती है तो वह भाग खड़ा होता
है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है, इसलिए वह अन्य
जीवों से अलग है। मनुष्य को पता है कि जीवन को
कैसे सुंदर और सुखी बनाए। इसलिए मनुष्य पढ़ाई करता
है, धन कमाता है, नाम, यश कमाता है।

                            मनुष्य और पशु में
यही अंतर है कि मनुष्य अपनी भलाई
कर सकता है, वह जानता है कि वह अच्छा
कर्म करेगा, अच्छी पढ़ाई करेगा, धन-वैभव प्राप्त
करेगा, तो उसे सुख मिलेगा। ऐसा पशु नहीं सोचता।
यही कारण है कि मनुष्य को विवेकशील कहा गया है।
जो अपनी भलाई की बात सोचता हो, अपने अच्छे भविष्य
की कामना करता हो, वही विवेकशील है। दूसरी ओर जो अपनी
भलाई, अपने जीवन को सुखमय, आनंदमय बनाने का प्रयास नहीं
करता उसे पशु-वृत्ति वाला जीव माना जाता है। जो अपना नुकसान
स्वयं करता हो वह मनुष्य की तरह रहता अवश्य है, लेकिन उसकी
वृत्ति मनुष्यों वाली नहीं होती।

इसलिए विद्यालयों में,
सत्संगों में लोगों को यह बताया जाता
है कि तुम अपने जीवन को सुखमय और
आनंदमय बनाने का प्रयास करो। हमारा जीवन
हमेशा विकारों और बुरी प्रवृत्तियों से भरा रहता है।
बुरा काम करने में अच्छा लगता है। इसलिए लोग बुराई
की ओर अधिक दौड़ते हैं। बुरा काम करते समय अच्छा भले
ही लगता हो, जैसे गलत आचरण, नशापान, गलत काम करना,
यह थोड़ी देर के लिए भले ही अच्छा लगता हो, इसका परिणाम
बहुत ही बुरा होता है। इसलिए हम अपने बच्चों को समझाते हैं कि
बचपन से ही बुरे कामों से बचे रहो। बचपन में जिसका शरीर स्वस्थ
और सुंदर नहीं रहता उसकी जवानी तो और भी कुरूप बन जाती है।
इसलिए हमें बचपन को बचाने का प्रयास करना चाहिए। स्वस्थ बचपन
ही सुंदर जवानी देता है और सुंदर जवानी में ही बुढ़ापे का फूल खिलता
है। जीवन का सुख भी आपका है और दुख भी आपका है। अगर आप
जीवन में सुंदर बनते हैं, सफल बनते हैं तो इसके लिए केवल आप ही
जिम्मेदार हैं।

 

Leave a comment